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Why girls and women like to wear Bangles? (क्यों पहनी जाती है चूड़ियाँ ?)

चुडिया सभी औरतों और लड़कियों को पसंद होती है और इनको बड़े ही चाव से पहना जाता है ।  आमतौर पर इस संबंध में यही मान्यता है कि चूड़ियां सुहाग की निशानी होती हैं और इसी कारण से औरतो दवारा पहनी जाती हैं। चूड़ियों को पहनने के पीछे सुहाग की निशानी के अलावा भी कई अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं।

आजकल अधिकांश महिलाएं चूड़ियां नहीं पहनती हैं। इस कारण कई महिलाओं को कमजोरी और शारीरिक शक्ति का अभाव महसूस होता है। जल्दी थकान हो जाती है और कम उम्र में ही गंभीर बीमारियां घेर लेती हैं। जबकि, पुराने समय में महिलाओं के साथ ऐसी समस्याएं नहीं होती थीं। उनका खानपान और नियम-संयम भी उनके स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखता था। चूड़ियों के कारण स्त्रियों को ऐसी कई समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।

शारीरिक रूप से महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक नाजुक होती हैं।चूड़ियां पहनने से स्त्रियों को शारीरिक रूप से शक्ति प्राप्त होती है। पुराने समय में स्त्रियां सोने या चांदी की चूड़ियां ही पहनती थी। सोना और चांदी लगातार शरीर के संपर्क में रहता है, जिससे इन धातुओं के गुण शरीर को मिलते रहते हैं।

महिलाओं को शक्ति प्रदान करने में सोने-चांदी के आभूषण भी मुख्य भूमिका अदा करते हैं। हाथों की हड्डियों को मजबूत बनाने में सोने-चांदी की चूड़ियां श्रेष्ठ काम करती हैं।

आयुर्वेद के अनुसार भी सोने-चांदी की भस्म शरीर को बल प्रदान करती है। सोने-चांदी के घर्षण से शरीर को इनके शक्तिशाली तत्व प्राप्त होते हैं, जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। इस कारण अधिक उम्र तक वे स्वस्थ रह सकती हैं।

चूड़ियों के संबंध में धार्मिक मान्यता यह है कि जो विवाहित महिलाएं चूड़ियां पहनती हैं, उनके पति की उम्र लंबी होती है। आमतौर पर ये बात सभी लोग जानते हैं। इसी वजह से चूड़ियां विवाहित स्त्रियों के लिए अनिवार्य की गई है। किसी भी स्त्री का श्रृंगार चूड़ियों के बिना पूर्ण नहीं हो सकता। चूड़ियां स्त्रियों के 16 श्रृंगारों में से एक है।

जिस घर में चूड़ियों की आवाज आती रहती हैं, वहां के वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा नहीं रहती है। चूड़ियों की आवाज भी सकारात्मक वातावरण निर्मित करती है। जिस प्रकार मंदिर की घंटी की आवाज वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है, ठीक उसी प्रकार चूड़ियों की मधुर ध्वनि भी वही कार्य करती है।

जिस घर में महिलाओं की चूड़ियों की आवाज आती रहती है, वहां देवी-देवताओं की भी विशेष कृपा बनी रहती है। ऐसे घरों में बरकत रहती है और वहां सुख-समृद्धि का वास होता है। साथ ही, यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि स्त्री को अपना आचरण भी पूर्णतया धार्मिक रखना चाहिए। केवल चूड़ियां पहनने से ही सकारात्मक फल प्राप्त नहीं हो पाते हैं।

मां लक्ष्मी की पूजा हेतु प्रमुख पूजन सामग्री एवं आरती


दीपावली का पर्व 13 नवंबर 2012, मंगलवार को है। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस पूजा में कुछ वस्तुओं का होना बहुत जरुरी माना जाता है क्योंकि ये वस्तुएं मां लक्ष्मी को अति प्रसन्न हैं। इन चीजों में घर में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में सफलता मिलती है। इनमें से प्रमुख 7 चीजें इस प्रकार हैं-   
  
1. स्वास्तिक- 
लोक जीवन में प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व दीवार पर स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम इन चारों दिशाओं को दर्शाती स्वास्तिक की चार भुजाएं, ब्रह्मïचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रमों का प्रतीक मानी गई हैं। यह चिह्नï केसर, हल्दी, या सिंदूर से बनाया जाता है।

2. वंदनवार- 
अशोक, आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे दीपावली के दिन पूर्वी द्वार पर बांधा जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की वंदनवार पूरे 31 दिनों तक बंधी रखने से घर-परिवार में एकता व शांति बनी रहती हैं।

3. कौड़ी- 
लक्ष्मी पूजन की सजी थाली में कौड़ी रखने की प्राचीन परंपरा है, क्योंकि यह धन और श्री का पर्याय है। कौड़ी को तिजौरी में रखने से लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।

4. बताशे या गुड़- 
ये भी ज्योति पर्व के मांगलिक चिह्न हैं। लक्ष्मी-पूजन के बाद गुड़- बताशे का दान करने से धन में वृद्धि होती है।

5. ईख (गन्ने)- 
लक्ष्मी की एक सवारी हाथी भी है और हाथी की प्रिय खाद्य सामग्री ईख यानी गन्ना है। दीपावली के दिन पूजन में ईख शामिल करने से ऐरावत प्रसन्न रहते हैं और उनकी शक्ति व वाणी की मिठास घर में बनी रहती है।

6. ज्वार का पोखरा- 
दीपावली के दिन ज्वार का पोखरा घर में रखने से धन में वृद्धि होती है तथा वर्ष भर किसी भी तरह के अनाज की कमी नहीं आती। लक्ष्मी के पूजन के समय ज्वार के पोखरे की पूजा करने से घर में हीरे-मोती का आगमन होता है।

7. रंगोली- 
लक्ष्मी पूजन के स्थान तथा प्रवेश द्वार व आंगन में रंगों के संयोजन के द्वारा धार्मिक चिह्नï कमल, स्वास्तिक कलश, फूलपत्ती आदि अंकित कर रंगोली बनाई जाती है। कहते हैं कि लक्ष्मीजी रंगोली की ओर जल्दी आकर्षित होती हैं।

नवरात्रि कल : घट स्थापना के शुभ मुहूर्त | 16-10-2012

घट स्थापना के शुभ मुहूर्त- 
16 October 2012 | Tuesday
  • सुबह 06:31 से 08:47 तक (चर लग्न तुला) 
  • सुबह 08:47 से 11:02 तक (स्थिर लग्न वृश्चिक) 
  • सुबह 09:18 से 10:45 तक (चर का चौघडिय़ा) 
  • सुबह 10:45 से दोपहर 12:12 तक (लाभ का चौघडिय़ा) 
  • दोपहर 11.49 से 12:35 (अभिजीत मुहूर्त) 
  • दोपहर 12:12 से 01:38 तक (अमृत का चौघडिय़ा) 
  • शाम 07:38 से रात 09:36 तक (स्थिर लग्न वृषभ)
विधि :
पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी शक्ति के अनुसार बनवाए गए सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की विधिपूर्वक स्थापित करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति की प्रतिष्ठा करें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वस्तिक और उसके दोनों कोनों में बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। पूजन सात्विक हो, राजस या तामसिक नहीं, इस बात का विशेष ध्यान रखें। नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।

नामकरण संस्कार

नामकरण शिशु जन्म के बाद पहला संस्कार कहा जा सकता है । यों तो जन्म के तुरन्त बाद ही जातकर्म संस्कार का विधान है, किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में वह व्यवहार में नहीं दीखता । अपनी पद्धति में उसके तत्त्व को भी नामकरण के साथ समाहित कर लिया गया है । इस संस्कार के माध्यम से शिशु रूप में अवतरित जीवात्मा को कल्याणकारी यज्ञीय वातावरण का लाभ पहँुचाने का सत्प्रयास किया जाता है । जीव के पूर्व संचित संस्कारों में जो हीन हों, उनसे मुक्त कराना, जो श्रेष्ठ हों, उनका आभार मानना-अभीष्ट होता है । नामकरण संस्कार के समय शिशु के अन्दर मौलिक कल्याणकारी प्रवृत्तियों, आकांक्षाओं के स्थापन, जागरण के सूत्रों पर विचार करते हुए उनके अनुरूप वातावरण बनाना चाहिए । 

शिशु कन्या है या पुत्र, इसके भेदभाव को स्थान नहीं देना चाहिए । भारतीय संस्कृति में कहीं भी इस प्रकार का भेद नहीं है । शीलवती कन्या को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है । 'दश पुत्र-समा कन्या यस्य शीलवती सुता ।' इसके विपरीत पुत्र भी कुल धर्म को नष्ट करने वाला हो सकता है । 'जिमि कपूत के ऊपजे कुल सद्धर्म नसाहिं ।' इसलिए पुत्र या कन्या जो भी हो, उसके भीतर के अवांछनीय संस्कारों का निवारण करके श्रेष्ठतम की दिशा में प्रवाह पैदा करने की दृष्टि से नामकरण संस्कार कराया जाना चाहिए । यह संस्कार कराते समय शिशु के अभिभावकों और उपस्थित व्यक्तियों के मन में शिशु को जन्म देने के अतिरिक्त उन्हें श्रेष्ठ व्यक्तित्व सम्पन्न बनाने के महत्त्व का बोध होता है । 

भाव भरे वातावरण में प्राप्त सूत्रों को क्रियान्वित करने का उत्साह जागता है । आमतौर से यह संस्कार जन्म के दसवें दिन किया जाता है । उस दिन जन्म सूतिका का निवारण-शुद्धिकरण भी किया जाता है । यह प्रसूति कार्य घर में ही हुआ हो, तो उस कक्ष को लीप-पोतकर, धोकर स्वच्छ करना चाहिए । शिशु तथा माता को भी स्नान कराके नये स्वच्छ वस्त्र पहनाये जाते हैं । उसी के साथ यज्ञ एवं संस्कार का क्रम वातावरण में दिव्यता घोलकर अभिष्ट उद्देश्य की पूर्ति करता है । 

यदि दसवें दिन किसी कारण नामकरण संस्कार न किया जा सके । तो अन्य किसी दिन, बाद में भी उसे सम्पन्न करा लेना चाहिए । घर पर, प्रज्ञा संस्थानों अथवा यज्ञ स्थलों पर भी यह संस्कार कराया जाना उचित है ।

यज्ञ पूजन विधि 

  • यज्ञ पूजन की सामान्य व्यवस्था के साथ ही नामकरण संस्कार के लिए विशेष रूप से इन व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिए ।
  • यदि दसवें दिन नामकरण घर में ही कराया जा रहा है, तो वहाँ सयम पर स्वच्छता का कार्य पूरा कर लिया जाए तथा शिशु एवं माता को समय पर संस्कार के लिए तैयार कराया जाए ।
  • अभिषेक के लिए कलश-पल्लव युक्त हो तथा कलश के कण्ठ में कलावा बाँध हो, रोली से ॐ, स्वस्तिक आदि शुभ चिह्न बने हों ।
  • शिशु की कमर में बाँधने के लिए मेखला सूती या रेशमी धागे की बनी होती है । न हो, तो कलावा के सूत्र की बना लेनी चाहिए ।
  • मधु प्राशन के लिए शहद तथा चटाने के लिए चाँदी की चम्मच । वह न हो, तो चाँदी की सलाई या अँगूठी अथवा स्टील की चम्मच आदि का प्रयोग किया जा सकता है ।
  • संस्कार के समय जहाँ माता शिशु को लेकर बैठे, वहीं वेदी के पास थोड़ा सा स्थान स्वच्छ करके, उस पर स्वस्तिक चिह्न बना दिया जाए । इसी स्थान पर बालक को भूमि स्पर्श कराया जाए ।
  • नाम घोषणा के लिए थाली, सुन्दर तख्ती आदि हो । उस पर निर्धारित नाम पहले से सुन्दर ढङ्ग से लिखा रहे । चन्दन रोली से लिखकर, उस पर चावल तथा फूल की पंखुड़ियाँ चिपकाकर, साबूदाने हलके पकाकर, उनमें रङ्ग मिलाकर, उन्हें अक्षरों के आकार में चिपकाकर, स्लेट या तख्ती पर रङ्ग-बिरङ्गी खड़िया के रङ्गों से नाम लिखे जा सकते हैं । थाली, ट्रे या तख्ती को फूलों से सजाकर उस पर एक स्वच्छ वस्त्र ढककर रखा जाए । नाम घोषणा के समय उसका अनावरण किया जाए ।
  • विशेष आहुति के लिए खीर, मिष्टान्न या मेवा जिसे हवन सामग्री में मिलाकर आहुतियाँ दी जा सकें ।
  • शिशु को माँ की गोद में रहने दिया जाए । पति उसके बायीं ओर बैठे । यदि शिशु सो रहा हो या शान्त रहता है, तो माँ की गोद में प्रारम्भ से ही रहने दिया जाए । अन्यथा कोई अन्य उसे सम्भाले, केवल विशेष कर्मकाण्ड के समय उसे वहाँ लाया जाए । निर्धारित क्रम से मङ्गलाचरण, षट्कर्म, संकल्प, यज्ञोपवीत परिवर्तन, कलावा, तिलक एवं रक्षा-विधान तक का क्रम पूरा करके विशेष कर्मकाण्ड प्रारम्भ किया जाए ।
नाम रखते समय निम्न बातों का ध्यान रखें :-

  • गुणवाचक नाम रखे जाएँ।
  • महापुरुषों एवं देवताओं के नाम भी बच्चों के नाम रखे जा सकते हैं । 
  • प्राकृतिक विभूतियों के नाम पर भी बच्चों के नाम रखे जा सकते हैं । 
  • लड़के और लड़कियों के उत्साहवर्धक, सौम्य एवं प्रेरणाप्रद नाम रखने चाहिए । 
  • समय-समय पर बालकों को यह बोध भी कराते रहना चाहिए कि उनका यह नाम है, इसलिए गुण भी अपने में वैसे ही पैदा करने चाहिए ।

गणेश चतुर्थी का पर्व



गणेश चतुर्थी 
इस बार गणेश चतुर्थी का पर्व 19 सितंबर, (बुधवार) 2012 को है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन घर-घर भगवान श्रीगणेश की स्थापना की जाती है और व्रत रखा जाता है। धर्म शास्त्रों में श्रीगणेश को प्रथम पूज्य व ज्ञान तथा बुद्धि का देवता माना गया है। सभी शुभ कार्यों से पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा का विधान है। 

गणेश उत्सव का पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है। इन दिनों में हर गली, मौहल्लों व चौराहों पर भी भगवान श्रीगणेश की स्थापना कर सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसे देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ता है। प्रमुख गणेश मंदिरों में दर्शन करने वालों का तांता लगा रहता है वहीं मंदिरों पर विशेष साज-सज्जा भी की जाती है। हर कोई अपने-अपने तरीके से भगवान श्रीगणेश की आराधना में जुट जाता है। श्रीगणेश को रोज लड्डू व मोदक का भोग लगाया जाता है।

महाराष्ट्र में गणेश उत्सव
महाराष्ट्र में गणेश उत्सव की रौनक देखते ही बनती है। यहां स्थापित की जाने वाली श्रीगणेश की विशालकाय मूर्तियां लोगों की श्रृद्धा व आकर्षण का केंद्र होती हैं।

10 दिन के बाद भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (इस बार 29 सितंबर, शनिवार) को पर्व का समापन होता है। भक्त घरों व सार्वजनिक स्थानों पर स्थापित श्रीगणेश की मूर्तियों का प्रवाहित करते हैं और कामना करते हैं कि अगले साल फिर से भगवान श्रीगणेश सुख व समृद्धि लेकर उनके घर आएं। चतुर्दशी की रात्रि को आकर्षक झाकियां निकाली जाती हैं जो लोगों को मंत्र मुग्ध कर देती हैं। इसी के साथ गणेश उत्सव का समापन हो जाता है।

शास्त्रों के अनुसार झाड़ू



घर में कई वस्तुएं होती हैं कुछ बहुत सामान्य रहती है। इनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। ऐसी चीजों में से एक है झाड़ू। जब भी साफ-सफाई करना हो तभी झाड़ू का काम होता है। अन्यथा इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। शास्त्रों के अनुसार झाड़ू के संबंध कई महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं।

शास्त्रों के अनुसार झाड़ू को धन की देवी महालक्ष्मी का ही प्रतीक रूप माना जाता है। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि झाड़ू ही हमारे घर से गरीबी रूपी कचरे को बाहर निकालती है और साफ-सफाई बनाए रखती है। घर यदि साफ और स्वच्छ रहेगा तो हमारे जीवन में धन संबंधी कई परेशानियां स्वत: ही दूर हो जाती हैं।

प्राचीन परंपराओं को मानने वाले लोग आज भी झाड़ू पर पैर लगने के बाद उसे प्रणाम करते हैं क्योंकि झाड़ू को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। विद्वानों के अनुसार झाड़ू पर पैर लगने से महालक्ष्मी का अनादर होता है। झाड़ू घर का कचरा बाहर करती है और कचरे को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है। जिस घर में पूरी साफ-सफाई रहती है वहां धन, संपत्ति और सुख-शांति रहती है। इसके विपरित जहां गंदगी रहती है वहां दरिद्रता का वास होता है। ऐसे घरों में रहने वाले सभी सदस्यों को कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी कारण घर को पूरी तरह साफ रखने पर जोर दिया जाता है ताकि घर की दरिद्रता दूर हो सके और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके।

घर से दरिद्रता रूपी कचरे को दूर करके झाड़ू यानि महालक्ष्मी हमें धन-धान्य, सुख-संपत्ति प्रदान करती है। जब घर में झाड़ू का कार्य न हो तब उसे ऐसे स्थान पर रखा जाता है जहां किसी की नजर न पड़े। इसके अलावा झाड़ू को अलग रखने से उस पर किसी का पैर नहीं लगेगा जिससे देवी महालक्ष्मी का निरादर नहीं होगा। यदि भुलवश झाड़ू को पैर लग जाए तो महालक्ष्मी से क्षमा की प्रार्थना कर लेना चाहिए।

दिवाली पूजा से पहले करें ये काम

पुराणों में दीपावली पर्व पर प्रात:काल से तेल स्नान करने का विधान बताया गया है, इसमें स्नान के पहले शरीर पर शुद्ध तेल की मालिश की जाती है उसके बाद स्नान किया जाता है। दीपावली पर्व पर यदि लक्ष्मी पूजा के पहले विशेष स्नान करें तो लक्ष्मी पूजा का पूरा फल मिलता है। यह विशेष आयुर्वेदिक स्नान किया जाए तो शरीर निरोगी होता है लक्ष्मी जी की विशेष कृपा दिलाता है।

ऐसा हो विशेष स्नान-
  • स्वाती नक्षत्र यानि दीपावली के दिन बरगद, गुलर, पीपल, आम और पाकड़ की छाल को पानी में उबाल कर स्नान करें तो लक्ष्मी कभी छोड़ कर नही जाती।
  • गाय के गोबर के पवित्र जल से गोमय स्नान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है।
  • दूध, दही और घी की कुछ बूंद जल में डाल कर स्नान करने से सभी दोष खत्म हो जाते है।
  • स्नान करने के जल में रत्न डाल कर उस जल से स्नान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है।
  • धातृफल स्नान करने से लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है।
  • पानी में शतावरी की जड़ डाल कर स्नान करने से मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
  • पलाश, बिल्वपत्र, कमल एवं कुशा को जल में डाल कर स्नान करने से लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त हो जाती है।

नवरात्रि: शुभ मुहूर्त (28 Sep 2011) व घट स्थापना की विधि

घट स्थापना के शुभ मुहूर्त

  • सुबह 09:46 से दोपहर 12:00 बजे तक स्थिर लग्र वृश्चिक
  • सुबह 11:15 से दोपहर 12:37 तक शुभ
  • शाम 04:43 से 06:05 तक लाभ तथा 05:27 तक स्थिर लग्र में
  • शाम 07:43 से रात्रि 09:21 तक शुभ, 08:37 से स्थिर लग्र में

विधि :
माता दुर्गा की आराधना का पवित्र पर्व नवरात्रि का प्रारंभ 28 सितंबर, बुधवार से हो रहा है। पहले दिन माता दुर्गा की प्रतिमा तथा घट की स्थापना की जाती है। इसके बाद ही नवरात्रि उत्सव का प्रारंभ होता है। माता दुर्गा व घट स्थापना की विधि तथा शुभ मुहूर्त का वर्णन इस प्रकार है-

पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी शक्ति के अनुसार बनवाए गए सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की विधिपूर्वक स्थापित करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति की प्रतिष्ठा करें।

मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वस्तिक और उसके दोनों कोनों में बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। पूजन सात्विक हो, राजस या तामसिक नहीं, इस बात का विशेष ध्यान रखें।

नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।

श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र सुलझाये हर समस्या

हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है अर्थात सभी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले श्रीगणेश की ही पूजा की जाती है। श्रीगणेश की पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।
भगवान श्रीगणेश को लाइफ मैनेजमेंट गुरु भी कहा जाता है क्योंकि श्रीगणेश के स्वरूप में ऐसे अनेक सूत्र छिपे हैं जो वर्तमान जीवन के लिए अति आवश्यक हैं। श्री गणेश चतुर्थी के अवसर पर हम आपके लिए लाएं हैं श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र। इसके माध्यम से आप अपने जीवन की परेशानियों व सवालों का हल आसानी से पा सकते हैं। यह बहुत ही चमत्कारी यंत्र है।


उपयोग विधि
जिसे भी अपने सवालों का जवाब या परेशानियों का हल जानना है वो पहले पांच बार ऊँ नम: शिवाय: मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जप करें। इसके बाद आंखें बंद करके अपना सवाल पूछें और भगवान श्रीगणेश का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक के फलादेश को ही अपने अपने प्रश्न का उत्तर समझें।


  1. आप जब भी समय मिले राम नाम का जप करें। आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।
  2. आप जो कार्य करना चाह रहे हैं, उसमें हानि होने की संभावना है। कोई दूसरा कार्य करने के बारे में विचार करें। गाय को चारा खिलाएं।
  3. आपकी चिंता दूर होने का समय आ गया है। कष्ट मिटेंगे और सफलता मिलेगी। आप रोज पीपल की पूजा करें।
  4. आपको लाभ प्राप्त होगा। परिवार में वृद्धि होगी। सुख संपत्ति प्राप्त होने के योग भी बन रहे हैं। आप कुल देवता की पूजा करें।
  5. आप शनिदेव की आराधना करें। व्यापारिक यात्रा पर जाना पड़े तो घबराएं नहीं। लाभ ही होगा।
  6. रोज सुबह भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। महीने के अंत तक आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।
  7. पैसों की तंगी शीघ्र ही दूर होगी। परिवार में वृद्धि होगी। स्त्री से धन प्राप्त होगा।
  8. आपको धन और संतान दोनों की प्राप्ति के योग बन रहे हैं। शनिवार को शनिदेव की पूजा करने से आपको लाभ होगा।
  9. आपकी ग्रह दिशा अनुकूल चल रही है। जो वस्तु आपसे दूर चली गई है वह पुन: प्राप्त होगी।
  10. शीघ्र ही आपको कोई प्रसन्नता का समाचार मिलने वाला है। आपकी मनोकामना भी पूरी होगी। प्रतिदिन पूजन करें।
  11. यदि आपको व्यापार में हानि हो रही है तो कोई दूसरा व्यापार करें। पीपल पर रोज जल चढ़ाएं। सफलता मिलेगी।
  12. राज्य की ओर से लाभ मिलेगा। पूर्व दिशा आपके लिए शुभ है। इस दिशा में यात्रा का योग बन सकता है। मान-सम्मान प्राप्त होगा।
  13. कुछ ही दिनों बाद आपका श्रेष्ठ समय आने वाला है। कपड़े का व्यवसाय करेंगे तो बेहतर रहेगा। सब कुछ अनुकूल रहेगा।
  14. जो इच्छा आपके मन में है वह पूरी होगी। राज्य की ओर से लाभ प्राप्ति का योग बन रहा है। मित्र या भाई से मिलाप होगा।
  15. आपके सपने में स्वयं को गांव जाता देंखे तो शुभ समाचार मिलेगा। पुत्र से लाभ मिलेगा। धन प्राप्ति के योग भी बन रहे हैं।
  16. आप देवी मां पूजा करें। मां ही सपने में आकर आपका मार्गदर्शन करेंगी। सफलता मिलेगी।
  17. आपको अच्छा समय आ गया है। चिंता दूर होगी। धन एवं सुख प्राप्त होगा।
  18. यात्रा पर जा सकते हैं। यात्रा मंगल, सुखद व लाभकारी रहेगी। कुलदेवी का पूजन करें।
  19. आपके समस्या दूर होने में अभी करीब डेढ़ साल का समय शेष है। जो कार्य करें माता-पिता से पूछकर करें। कुल देवता व ब्राह्मण की सेवा करें।
  20. शनिवार को शनिदेव का पूजन करें। गुम हुई वस्तु मिल जाएगी। धन संबंधी समस्या भी दूर हो जाएगी।
  21. आप जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता मिलेगी। विदेश यात्रा के योग भी बन रहे हैं। आप श्रीगणेश का पूजन करें।
  22. यदि आपके घर में क्लेश रहता है तो रोज भगवान की पूजा करें तथा माता-पिता की सेवा करें। आपको शांति का अनुभव होगा।
  23. आपकी समस्याएं शीघ्र ही दूर होंगी। आप सिर्फ आपके काम में मन लगाएं और भगवान शंकर की पूजा करें।
  24. आपके ग्रह अनुकूल नहीं है इसलिए आप रोज नवग्रहों की पूजा करें। इससे आपकी समस्याएं कम होंगी और लाभ मिलेगा।
  25. पैसों की तंगी के कारण आपके घर में क्लेश हो रहा है। कुछ दिनों बाद आपकी यह समस्या दूर जाएगी। आप मां लक्ष्मी का पूजन रोज करें।
  26. यदि आपके मन में नकारात्मक विचार आ रहे हैं तो उनका त्याग करें और घर में भगवान सत्यनारायण का कथा करवाएं। लाभ मिलेगा।
  27. आप जो कार्य इस समय कर रहे हैं वह आपके लिए बेहतर नहीं है इसलिए किसी दूसरे कार्य के बारे में विचार करें। कुलदेवता का पूजन करें।
  28. आप पीपल के वृक्ष की पूजा करें व दीपक लगाएं। आपके घर में तनाव नहीं होगा और धन लाभ भी होगा।
  29. आप प्रतिदिन भगवान विष्णु, शंकर व ब्रह्मा की पूजा करें। इससे आपको मनचाही सफलता मिलेगी और घर में सुख-शांति रहेगी।
  30. रविवार का व्रत एवं सूर्य पूजा करने से लाभ मिलेगा। व्यापार या नौकरी में थोड़ी सावधानी बरतें। आपको सफलता मिलेगी।
  31. आपको व्यापार में लाभ होगा। घर में खुशहाली का माहौल रहेगा और सबकुछ भी ठीक रहेगा। आप छोटे बच्चों को मिठाई बांटें।
  32. आप व्यर्थ की चिंता कर रहे हैं। सब कुछ ठीक हो रहा है। आपकी चिंता दूर होगी। गाय को चारा खिलाएं।
  33. माता-पिता की सेवा करें, ब्राह्मण को भोजन कराएं व भगवान श्रीराम की पूजा करें। आपकी हर अभिलाषा पूरी होगी।
  34. मनोकामनाएं पूरी होंगी। धन-धान्य एवं परिवार में वृद्धि होगी। कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।
  35. परिस्थितियां आपके अनुकूल नहीं है। जो भी करें सोच-समझ कर और अपने बुजुर्गो की राय लेकर ही करें। आप भगवान दत्तात्रेय का पूजन करें।
  36. आप रोज भगवान श्रीगणेश को दुर्वा चढ़ाएं और पूजन करें। आपकी हर मुश्किल दूर हो जाएंगी। धैर्य बनाएं रखें।
  37. आप जो कार्य कर रहे हैं वह जारी रखें। आगे जाकर आपको इसी में लाभ प्राप्त होगा। भगवान विष्णु का पूजन करें।
  38. लगातार धन हानि से चिंता हो रही है तो घबराइए मत। कुछ ही दिनों में आपके लिए अनुकूल समय आने वाला है। मंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करें।
  39. आप भगवान सत्यनारायण की कथा करवाएं तभी आपके कष्टों का निवारण संभव है। आपको सफलता भी मिलेगी।
  40. आपके लिए हनुमानजी का पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा। खेती और व्यापार में लाभ होगा तथा हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी।
  41. आपको धन की प्राप्ति होगी। कुटुंब में वृद्धि होगी एवं चिंताएं दूर होंगी। कुलदेवी का पूजन करें।
  42. आपको शीघ्र सफलता मिलने वाली है। माता-पिता व मित्रों का सहयोग मिलेगा। खर्च कम करें और गरीबों का दान करें।
  43. रुका हुआ कार्य पूरा होगा। धन संबंधी समस्याएं दूर होंगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। सोच-समझकर फैसला लें। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं।
  44. धार्मिक कार्यों में मन लगाएं तथा प्रतिदिन पूजा करें। इससे आपको लाभ होगा और बिगड़ते काम बन जाएंगे।
  45. धैर्य बनाएं रखें। बेकार की चिंता में समय न गवाएं। आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। ईश्वर का चिंतन करें।
  46. धार्मिक यात्रा पर जाना पड़ सकता है। इसमें लाभ मिलने की संभावना है। रोज गायत्री मंत्र का जप करें।
  47. प्रतिदिन सूर्य को अध्र्य दें और पूजन करें। आपको शत्रुओं का भय नहीं सताएगा। आपकी मनोकामना पूरी होगी।
  48. आप जो कार्य कर रहे हैं वही करते रहें। पुराने मित्रों से मुलाकात होगी जो आपके लिए फायदेमंद रहेगी। पीपल को रोज जल चढ़ाएं।
  49. अगर आपकी समस्या आर्थिक है तो आप रोज श्रीसूक्त का पाठ करें और लक्ष्मीजी का पूजा करें। आपकी समस्या दूर होगी।
  50. आपका हक आपको जरुर मिलेगा। आप घबराएं नहीं बस मन लगाकर अपना काम करें। रोज पूजा अवश्य करें।
  51. आप जो व्यापार करना चाहते हैं उसी में सफलता मिलेगी। पैसों के लिए कोई गलत कार्य न करें। आप रोज जरुरतमंद लोगों को दान-पुण्य करें।
  52. एक महीने के अंदर ही आपकी मुसीबतें कम हो जाएंगी और सफलता मिलने लगेगी। आप कन्याओं को भोजन कराएं।
  53. यदि आप विदेश जाने के बारे में सोच रहे हैं तो अवश्य जाएं। इसी में आपको सफलता मिलेगी। आप श्रीगणेश का आराधना करें।
  54. आप जो भी कार्य करें किसी से पुछ कर करें अन्यथा हानि हो सकती है। विपरीत परिस्थिति से घबराएं नहीं। सफलता अवश्य मिलेगी।
  55. आप मंदिर में रोज दीपक जलाएं, इससे आपको लाभ मिलेगा और मनोकामना पूरी होगी।
  56. परिजनों की बीमारी के कारण चिंतित हैं तो रोज महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। कुछ ही दिनों में आपकी यह समस्या दूर हो जाएगी।
  57. आपके लिए समय अनुकूल नहीं है। अपने कार्य पर ध्यान दें। प्रमोशन के लिए रोज गाय को रोटी खिलाएं।
  58. आपके भाग्य में धन-संपत्ति आदि सभी सुविधाएं हैं। थोड़ा धैर्य रखें व भगवान में आस्था रखकर लक्ष्मीजी को नारियल चढ़ाएं।
  59. जो आप सोच रहे हैं वह काम जरुर पूरा होगा लेकिन इसमें किसी का सहयोग लेना पड़ सकता है। आप शनिदेव की उपासना करें।
  60. आप अपने परिजनों से मनमुटाव न रखें तो ही आपको सफलता मिलेगी। रोज हनुमानजी के मंदिर में चौमुखी दीपक लगाएं।
  61. यदि आप अपने करियर को लेकर चिंतित हैं तो श्रीगणेश की पूजा करने से आपको लाभ मिलेगा।
  62. आप रोज शिवजी के मंदिर में जाकर एक लोटा जल चढ़ाएं और दीपक लगाएं। आपके रुके हुए काम हो जाएंगे।
  63. आप जिस कार्य के बारे में जानना चाहते हैं वह शुभ नहीं है उसके बारे में सोचना बंद कर दें। नवग्रह की पूजा करने से आपको सफलता मिलेगी।
  64. आप रोज आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं। आपकी हर समस्या का निदान स्वत: ही हो जाएगा।

किसी की मृत्यु हो जाने पर क्या करें ?



संसार का प्रत्येक प्राणी जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, यह चक्र सदा से चलता आया है और चलता रहेगा। मृत्यु के समय की हिन्दू धर्म में अनेक परंपराएं है। लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि मृत्यु के समय कौन से रिवाज है। जिन्हें हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार निभाना जरूरी माना गया है। ये रिवाज कुछ इस तरह है।

मृतक का सिर दक्षिण में तथा पैर उत्तर दिशा की ओर हो इस बात का ध्यान रखें।

उसके मुख में गंगाजल जल डालें और तुलसीदल रखें।

तुलसीदल के गुच्छे से मृत व्यक्ति के कानों और नासिकाओं को बंद करें।

परिवार का विधिकर्ता पुरुष अपना सिर मुड़वाए।

मृत्योपरांत कुछ समय के लिए जीव की सूक्ष्म देह परिजनों के आस-पास ही घूमती रहती है।

उससे प्रक्षेपित रज-तम तरंगें परिजनों के केश के काले रंग की ओर आकर्षित होते हैं।

गोमूत्र अथवा तीर्थ छिडककर, यदि संभव हो तो धूप दिखाकर, शुद्ध किए गए नए वस्त्र मृत व्यक्ति को पहनाएं।

घर में गेहूं के आट का गोला बनाकर उस पर मिट्टीका दीप जलाएं।

दीपक की ज्योति दक्षिण दिशा की ओर हो।

तिलक लगवाते समय सिर पर हाथ क्यों रखते हैं?

तिलक बिना लगाएं हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कोई भी पूजा-प्रार्थना नहीं होती। सूने मस्तक को अशुभ माना जाता है। तिलक लगाते समय सिर पर हाथ रखना भी हमारी एक परंपरा है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसका कारण क्या है?

दरअसल धर्म शास्त्रों के अनुसार सूने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। तिलक लगाने के लिए अनामिका अंगुली शांति प्रदान करती है। मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है। अंगूठा प्रभाव और ख्याति तथा आरोग्य प्रदान कराता है। इसीलिए राजतिलक अथवा विजय तिलक अंगूठे से ही करने की परंपरा रही है। तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है। ज्योतिष के अनुसार अनामिका तथा अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं। अनामिका सूर्य पर्वत की अधिष्ठाता अंगुली है। यह अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका तात्पर्य यही है कि सूर्य के समान, दृढ़ता, तेजस्वी, प्रभाव, सम्मान, सूर्य जैसी निष्ठा-प्रतिष्ठा बनी रहे।

दूसरा अंगूठा है जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवन शक्ति का प्रतीक है। जीवन में सौम्यता, सुख-साधन तथा काम-शक्ति देने वाला शुक्र ही संसार का रचयिता है। माना जाता है कि जब अंगुली या अंगूठे से तिलक किया जाता है तो आज्ञा चक्र के साथ ही सहस्त्रार्थ चक्र पर ऊर्जा का प्रवाह होता है। सकारात्मक ऊर्जा हमारे शीर्ष चक्र पर एकत्र हो साथ ही हमारे विचार सकारात्मक हो व कार्यसिद्ध हो। इसीलिए तिलक लगावाते समय सिर पर हाथ जरूर रखना चाहिए।

सुख-समृद्धि के धार्मिक उपाय

यदि परिश्रम के पश्चात् भी कारोबार ठप्प हो, या धन आकर खर्च हो जाता हो तो यह उपाय काम में लें। किसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के दिन प्रात: हरे रंग के कपड़े की छोटी थैली तैयार करें। श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे "संकटनाशन गणेश स्तोत्र´´ के 11 पाठ करें। तत्पश्चात् इस थैली में 7 मूंग, 10 ग्राम साबुत धनिया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रूपया या 2 सुपारी, 2 हल्दी की गांठ रख कर दाहिने मुख के गणेश जी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाएं। फिर यह थैली तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान करते रहे। आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नयी थैली बना कर बदलते रहें।

किसी के प्रत्येक शुभ कार्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर "बटुक भैरव स्तोत्र´´ का एक पाठ कर के गौ, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।

रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं, जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें `जय गणेश काटो कलेश´।

सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की `कुशा´ की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के पश्चात् किसी शुभ कार्य में दानादि दें।

शिव की प्रार्थना देती है मनचाहे सुख



हिन्दू पंचांग के हर माह में दो चतुर्दशियां होती है। चतुर्दशी का स्वामी भगवान शिव को माना गया है। पुराणों में दिव्य ज्योर्तिलिंग का प्राकट्य भी चतुर्दशी की रात्रि को बताया गया है। इसलिए इस तिथि पर शाम भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व है और यह सांसारिक जीवन से जुड़े तमाम सुख देने वाली मानी गई है।

शास्त्रों में हर माह के चतुर्दशी तिथि पर व्रत और शिव पूजा के विधि-विधान बताए गए हैं। इसके अंतर्गत पूजा के बाद भूमि पर शयन के वक्त विशेष शिव प्रार्थना भी बताई गई है, जिससे शिव कृपा के साथ हर सुख मिलते हैं। जानते हैं शिव चतुर्दशी को शिव पूजा विधि और शिव प्रार्थना -

शिव चतुर्दशी व्रत एवं पूजा के शुभ फल के लिए त्रयोदशी के दिन एक बार भोजन और चतुर्दशी को उपवास करें।
इस दिन सुबह और शाम भगवान शंकर और पार्वती की पंचोपचार पूजा करें। जिसमें गंध, अक्षत, बिल्वपत्र, धतुरा, आंकड़े के फूल अर्पित करें।
यथाशक्ति शिव-पार्वती के साथ सोने के बैल की भी पूजा करें।
शिव स्तुति, मंत्र जप के बाद धूप और दीप से शिव आरती करें।
पूजा और स्तुति के बाद सोने का बैल और जल भरा कलश किसी विद्वान ब्राह्मण को दान करें।
इस व्रत और पूजा के विशेष नियमों में भक्त खान-पान के साथ ही बोल और आचरण में भी पवित्रता रखे। रात्रि में भूमि पर ही सोएं और शिव की यह विशेष प्रार्थना करें -

शंकराय नमस्तुभ्यं नमस्ते करवीरक।
त्र्यम्बकाय नमस्तुभ्यं महेश्वरमत: परम्।।
नमस्तेस्तु महादेव स्थावणे च तत: परम्।
नम: पशुपते नाथ नमस्ते शम्भवे नम:।।
नमस्ते परमानन्द नम: सोमर्धधारिणे।
नमो भीमाय चोग्राय त्वामहं शरणं गत:।।

निवेदन :
अगर आपकी देव उपासना या पूजन विधि से जुड़ी कोई जिज्ञासा हो या कोई जानकारी चाहते हैं तो इस आर्टिकल पर टिप्पणी के साथ नीचे कमेंट बाक्स के जरिए हमें भेजें।

शुभ-लाभ क्यों लिखते हैं?


किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वस्तिक के नहीं किया जा सकता। हमारे यहां मुख्यद्वार पर स्वस्तिक के आसपास शुभ-लाभ लिखने की परंपरा है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं और शुभ व लाभ यानी शुभ व क्षेम को उनके पुत्र माना गया है। कहते हैं जहां शुभ होता है वहां हर काम में फायदा यानी लाभ अपने आप होने लगता है या जहां हर कार्य में लाभ होता है वहां सबकुछ अपने आप शुभ होने लगता है।

इसीलिए वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसी मान्यता है कि घर के मुख्य द्वार पर स्वस्तिक बनाकर शुभ-लाभ लिखने से घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है। ऐसे घर में हमेशा गणेशजी की कृपा रहती है और धन-धान्य की कमी नहीं होती।

स्वस्तिक के साथ ही शुभ-लाभ का चिन्ह भी धनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। इसलिए स्वस्तिक के चिन्ह के साथ ही हर-त्यौहार पर घर के मुख्यद्वार पर सिन्दूर से शुभ-लाभ लिखा जाता है। जिससे घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती और घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है। इसी वजह से मुख्यद्वार पर स्वस्तिक बनाने व शुभ-लाभ लिखने की परंपरा बनाई गई।

निवेदन :
आपको विभिन्न परंपराओं के बारे में मिल रही इन जानकारियों को पढ़कर कैसा लगा? भारतीय धार्मिक परंपराओं या प्रथाओं के संबंध में आपके पास कोई रोचक जानकारी है या आप कुछ और जानना चाहते हैं तो यहां कमेंट कर अन्य पाठकों से शेयर करें।

महापर्व नवरात्रि शुभ मुहूर्त व इसके लिए कुछ विशेष व्यंजन

नवरात्रि: घटस्थापना शुभ मुहूर्त
मां दुर्गा की श्रद्धा-भक्ति का महापर्व नवरात्रि शुक्रवार 8 अक्टूबर 2010 से प्रारंभ हो रहा है। नवरात्रि अर्थात् नौ दिनों तक माता की आराधना का पर्व। इस नवरात्रि माता की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करें। यहां घट स्थापना के शुभ मुहूर्त दिए जा रहे हैं-
अमृतकाल- प्रात: 9:00 से 10:30 बजे तक।
स्थिर लग्न- (वृश्चिक) प्रात: 09:18 बजे से 10:29 बजे तक
चौघडिय़ा मुहूर्त-   
  • चल- 06:20 से 07:50 तक
  • लाभ- 07:50 से 09:20 तक 
  • अमृत- 09:20 से 10:50 तक
  • शुभ- 12:20 से 01:50 तक
  • चल- 04:50 से 06:20 तक
(राहुकाल 10:30 से प्रारंभ हो रहा है, इसलिए 10:30 से पहले ही स्थापना कार्य कर लें।)
घट स्थापना कैसे करें-
  • प्रात: काल घर का आंगन साफ धोकर गौ मूत्र से शुद्ध करें।
  • गाय का कच्चा दूध और गंगाजल मिला कर पूरे घर में छीटें।
  • अलग अलग पवित्र रंगों से रंगोली बनाएं।
  • घर के मुख्य द्वार को सजाएं।
  • भजन, कीर्तन एवं शंख नाद की मंगल ध्वनी के साथ मां दुर्गा का स्वागत करें।
स्थिर लग्न में स्थापना करें-
  • ज्योतिष के अनुसार स्थिर लग्न में किए हुए कार्य पूर्ण होते है, शुभ फल देने वाले होते है। साथ ही किए हुए कार्य का प्रभाव भी स्थायी होता है। इसलिए शुभ कार्यों को करने से पहलें स्थिर लग्न का विचार किया जाता।
राहुकाल में स्थापना न करें-
  • ज्योतिष के अनुसार राहुकाल को अशुभ समय माना जाता है एवं ऐसा माना जाता है कि इस काल में किया हुआ कार्य अशुभ फल देता है। इस दिन 
  • राहुकाल- प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक रहेगा।
कुट्टू के पकौड़े

सामग्री :  
  • 3 छोटे साइज के आलू ( आधे उबले हुए ), 
  • आधा चम्मच व्रत वाला नमक , 
  • आधी चम्मच काली मिर्च, 
  • आधा कप कुट्टू का आटा, 
  • फ्राई करने के लिए घी या वेजीटेबिल ऑयल, 
  • एक चौथाई कप कटा धनिया। 
विधि 
  • एक बाउल में कुट्टू का आटा , नमक और काली मिर्च डाल लें। इसमें पानी डालें और तब तक घुमाते रहें , जब तक कि यह क्रीम जैसा ना हो जाए। अब इस मिक्सचर को ढककर 20 मिनट के लिए अलग रख दें। आलू को छीलकर स्लाइस में काट लें। एक पैन में घी या तेल गर्म करें। आलू की स्लाइस को मिक्सचर में अच्छी तरह कवर करके गर्म तेल में डाल दें। एक बार में तीन से चार स्लाइस फ्राई करें। इन्हें तब तक फ्राई करें , जब तक इनका कलर हल्का रेड ना हो जाए। इन्हें चटनी के साथ सर्व करें। 
साबूदाना वड़ा 
सामग्री : 
  • एक आलू ( मैश किया हुआ ), 
  • 8-10 हरी मिर्च ( पीसी हुई ), 
  • एक कप साबूदाना , 
  • आधा कप मूंगफली ( रोस्टेड व क्रस्ड ), 
  • रॉक साल्ट स्वादानुसार , 
  • तेल। 
विधि : 
  • साबूदाना को धोकर 2 से 3 घंटे तक पानी में भिगो दें। अब इसमें आलू , हरी मिर्च , मूंगफली और नमक मिला दें। सभी चीजों को इतना मिक्स करें कि यह पेस्ट जैसा बन जाए। तेल को पैन में गर्म करें। अपने हाथ गीला को गीला कर लें और मिक्सचर की छोटी - छोटी बॉल बना लें। इन बॉल्स को गर्म तेल में हल्की आंच पर फ्राई करें। इन्हें तब तक फ्राई करें , जब तक वे ब्राउन व क्रिस्पी ना हो जाए। अब आप इन्हें खाने के लिए परोस सकते हैं। 
खीर विद ड्राई फ्रूट्स 

सामग्री : 
  • 100 ग्राम स्वांक के चावल, 
  • 500 ग्राम दूध , 
  • 50 ग्राम किशमिश, 
  • 1 चम्मच काजू ( बारीक कटे हुए ), 
  • 1 चम्मच छुआरे बारीक काट लें, 
  • 100 ग्राम चीनी , 
  • पानी जरूरत के मुताबिक। 
विधि : 
  • चावलों को अच्छी तरह साफ करके धो लें। प्रेशर कुकर में चावल और पानी डालकर दो सीटी लगाएं। जब चावल ठंडे हो जाए , तो ढक्कन खोल दें। अब इसमें दूध डालकर बिना ढक्कन लगाए हल्की आंच पर पांच मिनट तक पकाएं। दूध और चावल अच्छी तरह मिक्स हो जाए , तो इसमें चीनी, किशमिश, काजू और छुआरे डाल दें और कुकर का ढक्कन बंद करके पांच मिनट तक पकने दें। हो गई आपकी स्वादिष्ट खीर तैयार।

मासिक धर्म : क्यों और क्या ना करे ?

परमात्मा द्वारा स्त्री और पुरुषों में कई भिन्नताएं रखी गई हैं। इन भिन्नताओं के कारण स्त्री और पुरुषों में कई शारीरिक और स्वास्थ्य संबंधी अनेक विषमताएं रहती हैं। इन्हीं विषमताओं में से एक हैं स्त्रियों में मासिक-धर्म।  
  • वैदिक धर्म के अनुसार मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं के लिए सभी धार्मिक कार्य वर्जित किए गए हैं। साथ ही इस दौरान महिलाओं को अन्य लोगों से अलग रहने का नियम भी बनाया गया है। ऐसे में स्त्रियों को धार्मिक कार्यों से दूर रहना होता है क्योंकि सनातन धर्म के अनुसार इन दिनों स्त्रियों को अपवित्र माना गया है।
  • यह व्यवस्था प्राचीन काल से ही चली आ रही है। पुराने समय में ऐसे दिनों में महिलाओं को कोप भवन में रहना होता था। उस दौरान वे महिलाएं कहीं बाहर आना-जाना नहीं करती थीं। इस अवस्था में उन्हें एक वस्त्र पहनना होता था और वे अपना खाना आदि कार्य स्वयं ही करती थीं।
  • मासिक धर्म के दिनों के लिए ऐसी व्यवस्था करने के पीछे स्वास्थ्य संबंधी कारण हैं। आज का विज्ञान भी इस बात को मानता है कि उन दिनों में स्त्रियों के शरीर से रक्त के साथ शरीर की गंदगी निकलती है जिससे महिलाओं के आसपास का वातावरण अन्य लोगों के स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक हो जाता है, संक्रमण फैलने का डर रहता है। साथ ही उनके शरीर से विशेष प्रकार की तरंगे निकलती हैं, वह भी अन्य लोगों के लिए हानिकारक होती है। बस अन्य लोगों को इन्हीं बुरे प्रभावों से बचाने के लिए महिलाओं को अलग रखने की प्रथा शुरू की गई।
  • माहवारी के दिनों में महिलाओं में अत्यधिक कमजोरी भी आ जाती है तो इन दिनों अन्य कार्यों से उन्हें दूर रखने के पीछे यही कारण है कि उन्हें पर्याप्त आराम मिल सके। इन दिनों महिलाओं को बाहर घुमना भी नहीं चाहिए क्योंकि ऐसी अवस्था में उन्हें बुरी नजर और अन्य बुरे प्रभाव जल्द ही प्रभावित कर लेते हैं।

फेरे सात ही क्यों ?

इंसानी जिंदगी में विवाह एक बेहद महत्वपूर्ण घटना है। जब दो इंसान जीवन भर साथ में मिलकर धर्म के रास्ते से जीवन लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। हर परिस्थिति में एक - दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लिया जाता है। संकल्प या वचन सदैव देव स्थानों या देवताओं की उपस्थिति में लेने का प्रावधान होता है। इसीलिये विवाह के साथ फेरे और वचन अग्रि के सामने लिये जाते हैं। फेरे सात ही क्यों लिये जाते हैं इसका कारण सात अंक की महत्ता के कारण होता है। शास्त्रों में सात की बजाय चार फेरों का वर्णन भी मिलता है। तथा चार फेरों में से तीन में दुल्हन तथा एक में दुल्हा आगे रहता है। किन्तु फिर भी आजकल विवाह में सात फेरों का ही अधिक प्रचलन है। हमारी संस्कृति में, हमारे जीवन में, हमारे जगत में इस अंक विशेष का कितना महत्व है आइये जाने.....
  • सूर्य प्रकाश में रंगों की संख्या भी सात।
  • संगीत में स्वरों की संख्या की संख्या भी सात: सा, रे, गा, मा, प , ध, नि।
  • पृथ्वी के समान ही लोकों की संख्या भी सात: भू, भु:, स्व: मह:, जन, तप और सत्य। 
  • सात ही तरह के पाताल: अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। 
  • द्वीपों तथा समुद्रों की संख्या भी सात ही है।
  • प्रमुख पदार्थ भी सात ही हैं: गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि जो कि शुद्ध माने जाते हैं।
  • प्रमुख क्रियाएं भी सात ही हैं: शौच, मुखशुद्धी, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन तथा निद्रा।
  • पूज्यनीय जनों की संख्या भी सात ही है: ईश्वर, गुरु, माता, पिता, सूर्य, अग्रि तथा अतिथि।
  • इंसानी बुराइयों की संख्या भी सात: ईष्र्या, का्रोध, मोह, द्वेष, लोभ, घृणा तथा कुविचार।
  • वेदों के अनुसार सात तरह के स्नान: मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्रि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान, और मानसिक स्नान।
7- अंक की इस रहस्यात्मक महत्ता के कारण ही प्राचीन ऋषि-मुनियों, विद्वानों या नीति-निर्माताओं ने विवाह में सात फेरों तथा सात वचनों को शामिल किया है। अपने परिजनों, संबधियों और मित्रों की उपस्थिति में वर-वधु देवतुल्य अग्नि की सात परिक्रमा करते हुए सात वचनों को निभाने का प्रण करते हैं यानि कि संकल्प करते हैं। मन ही मन ईश्वर से कामना करते हैं कि हमारा प्रेम सात समुद्रों जितना गहरा हो। हर दिन उसमें संगीत के सातों स्वरों का माधुर्य हो। जीवन में सातों रंगों का प्रकाश फै ले। दोनों एक होकर इतने सद्कर्म करें कि हमारी ख्याती सातों लोकों में सदैव बनी रहे।

शिव पूजन लिंग रूप में क्यों?

हिंदू धर्म में त्रिदेवों का सर्वाधिक महत्व बताया गया है ब्रह्मा, विष्णु व महेश। इनमें से सिर्फ भगवान शिव ही ऐसे हैं जिनकी लिंग रूप में भी पूजा की जाती है। ऐसा क्यों? इस प्रश्न का उत्तर शिवमहापुराण में विस्तृत रूप से दिया गया है, जो इस प्रकार है-
शिवमहापुराण के अनुसार एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल (निराकार) कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण उन्हें सकल(साकार) भी कहा गया है। इसलिए शिव सकल व निष्कल दोनों हैं। उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही है अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है अर्थात शिव का साकार विग्रह उनके साकार स्वरूप का प्रतीक होता है। 
सकल और अकल(समस्त अंग-आकार सहित साकार और अंग-आकार से सर्वथा रहित निराकार) रूप होने से ही वे ब्रह्म शब्द कहे जाने वाले परमात्मा हैं। यही कारण है सिर्फ शिव एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनका पूजन निराकार(लिंग) तथा साकार(मूर्ति) दोनों रूप में किया जाता है। भगवान शिव ब्रह्मस्वरूप और निष्कल(निराकार) हैं इसलिए उन्हीं की पूजा में निष्कल लिंग का उपयोग होता है। संपूर्ण वेदों का यही मत है।

क्यों करती है स्त्रियां पति के लिए व्रत ?

वट सावित्री व्रत स्त्रियों द्वारा पति और परिवार के सुख की कामना से रखा जाता है। कहीं न कहीं यह प्रश्र आता है कि आखिर स्त्रियों द्वारा ही पति के लिए वट पूजा और अन्य व्रत क्यों रखे जाते है। जानते हैं इसके व्यावहारिक पक्ष को। स्त्रियों के लिए इस व्रत रखने के पीछे दर्शन यह है कि चूंकि स्त्री जननी होती है। वह मां, पत्नी, बहन आदि रुपों में परिवार में सुख और संस्कार देने वाली होती है। वहीं भारतीय समाज में पुरुष की भूमिका परिवार के लिए जीविकोपार्जन करने वाले की रही है। पुरुष के साथ स्त्री समान रुप से घर की जिम्मेदारियों को निभाती आई है। समयाभाव के कारण पुरुष की अनुपस्थिति में पति-पत्नी और परिवार के सदस्यों के बीच रिश्तों के प्रति निष्ठा, विश्वास, भावना, लगाव और संस्कार बने रहें, इसलिए स्त्रियों के लिए पातिव्रत्य धर्म के पालन के लिए वट सावित्री जैसे अन्य व्रत विधान नियत किए गए। जिससे स्त्री के माध्यम से अगली पीढ़ी भी इन धार्मिक और पारिवारिक संस्कारों को अपनाए और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा होती रहे।


वट सावित्री व्रत - १० जून और २४ जून से आरंभ

हिन्दू धर्म पंचांग के ज्येष्ठ मास की अमावस्या और पूर्णिमा तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस व्रत का पालन ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी यानि १० जून से ज्येष्ठ अमावस्या यानि १२ जून तक किया जाएगा। ज्येष्ठ पूर्णिमा को व्रत रखने वाली स्त्रियों के लिए इस व्रत का पालन ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी यानि २४ जून से ज्येष्ठ पूर्णिमा २६ तक किया जाएगा। यह व्रत विशेष रुप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इस दिन वट वृक्ष या बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। पुराण कथा के अनुसार इसी दिन सती सावित्री ने अपने पातिव्रत्य के बल से अपने मृत पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से प्राप्त कर न केवल नया जीवन दिया बल्कि अखण्ड सौभाग्य का वर भी पाया था। इसलिए यह तिथि वट सावित्री अमावस्या के नाम से प्रसिद्ध है। 
इस व्रत के संबंध में पुराणों में अलग-अलग मत हैं। जहां भविष्यपुराण में यह ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को और अन्य धर्मग्रंथों मे अमावस्या के दिन रखे जाने का विधान बताया है। साथ ही यह व्रत विधवा, कन्या, जिस स्त्री का पुत्र न हो द्वारा भी किया जा सकता है। क्योंकि सती सावित्री न केवल पतिव्रता के रुप में बल्कि एक आदर्श स्त्री का धर्म निभाते हुए अखण्ड सौभाग्य के साथ ही कुटुम्ब के सुख और पुत्रवान होने के वर भी यमदेव से पाए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से व्रत करने वाली स्त्रियां अखण्ड सौभाग्य, पुत्र और परिवार सुख पाती है। 
अविवाहित कन्याएं भी सुयोग्य वर पाती हैं। यहां तक कि विधवा स्त्री का भी संताप और विषाद का अंत होकर सौभाग्य प्राप्त होता है।